Tuesday, April 3, 2012

जिस देश में  गंगा बहती  है  !
अविरल, तरल --तरंगे , कल-कल निनाद ,  शिवे--शैल - सुखे,   गौमुख उद्गम से ....
ऐसा  अनेको संतों  और कवियों की  भाषा में  पढ़ते  आये  है  !-- हर हर गंगे की महिमा !
यदि भारतीय  सृष्टि  की कन्याकुमारी  पुत्रियों  के सृजनआत्मक  रीतियों को देखें , समझे ...
और गंगा  के आदि--उद्भव  की स्मृतियों को  ध्यान दें -- इतना ही नहीं  , वरन गंगा के गुणों  की व्याख्या  में
अपने  भारतीयता के गुणों को  आत्मसार करे  , सो येही पाएंगे  की  भारतीय  पुत्रियों के गुणों  में  गंगा जैसे
तत्व  -सत्व --निराकार से  मकार होते हुएय  दीखते हैं ....संवेदनशीलता -- सर्वप्रथम अपने  पिता के रिश्ते  में ,
परमआत्मा , भगवान , ईश्वर  के  पूज्यनीय  दैविक  -पुरुष  आदि के  गूढ़ रहस्य  को  साकार स्वीकारना  सीखना ;  आज्ञाकारी  होने  से  --अहंकार ,  मद ,  को  ऐसे  मन--बुद्धि  के स्वाध्याय में  ,विचारों की गहनता में परिवर्तित  कर लेना ; जैसे  कि-- माता कि  सरस्वती  साधना को भी  सयुज -यज्ञ  कृति  सहयोग मिले .....!

अपने भाग्नेया ( भाई )  के रिश्तों में  -- सहज  सस्नेह -सतप्रेम  के  विशुद्ध भावों  को वीरता  के आदर्श में ,
आपसी   मतभेद को  मृदुल  विचारो -भावों से  कठिन  परिस्थितियों में भी   सहज -शांतप्रियता  से स्वीकारना ,
कि  यदि -- पौरुष --या  मनुष्य के  कठोर  --क्रूर  - पशुता को  परिवर्तित   करना है तो  माँ  के जैसे  ही  --अपने स्वात्म--अहम् को   गंगा के पानी जैसा -- निर्मल --विशुद्ध , पवित्र , और कोमल   भवानी होना होगा ....!
 फिर चाहे - भौतिक  सुखों  में भोग -वृत्ति को  त्यागना  पड़े  या  सांसारिक --एंद्रियों को  आत्म-वश कर के ,
हर नए दिन , हर नए  पारिवारिक ,  सामाजिक  , समस्याओं को सुलझाने में तत्पर --तैयार -स्वावलंबी  रहना ....!

अनेको  धार्मिक ग्रंथों  और  आध्यामिक  गुरुओं ने भी  --जल --पानी  के तत्व  को  --प्रकृति  में --नदियों के
रहस्यमय  जीवन को  माँ  कि शक्ति का आधार यानि  दैवी  -गुणों से  भरपूर   जाना -समझा -- और   शिव  के उपासक तो गंगा को   शिव  कि  जटा    में संयंत्रित  --पुत्री  कि भाँती  -- अपने अमृत तत्वों से  मनुष्यों का   उद्धार करने वाली  जननी  भी  स्वीकार  किया है ....
आज के कलियुग में हमे  --उसी  --माँ कि  अमृत शक्ति  कि  निर्मल -धारा--- विशुद्ध -पावनी --शिव कि शिवानी  को   अपने अन्दर   कि मात्रि--सृजनात्मक  भाव विभूतियों  के द्वारा जागृत --आत्मसार --स्वीकार करना ही  होगा ... यदि   सम्पूर्ण  विश्व  में  वसुधैव  -- कुटुंब   के  -तत-सवित्तुर --सूर्या -- पुत्रों -पुत्रियों  को भी
सृजन --सृष्टि --की--रचनात्मक  विशक्तियों   सहित परिवर्तित -करते रहना है ...और विनाश कारी--अस्त्रों --से  भरे  विश्व को  परिवर्तन   करे  --शांति --संवेदना --मृदु --सरलता --दैविक -सौन्दर्य -बोध --ममतामयी
--करुना --वात्सल्य की प्राथमिकता  जैसे  गंगा  तत्व -आधार से  ...???
अपने  स्वजनों  --भगिनी --भाग्नेया  बंधू--बांधवों  से  सर्वप्रथम येही  --रचनात्मक --सृजन की अभीप्सा है !!! 
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