जिस देश में गंगा बहती है !
अविरल, तरल --तरंगे , कल-कल निनाद , शिवे--शैल - सुखे, गौमुख उद्गम से ....
ऐसा अनेको संतों और कवियों की भाषा में पढ़ते आये है !-- हर हर गंगे की महिमा !
यदि भारतीय सृष्टि की कन्याकुमारी पुत्रियों के सृजनआत्मक रीतियों को देखें , समझे ...
और गंगा के आदि--उद्भव की स्मृतियों को ध्यान दें -- इतना ही नहीं , वरन गंगा के गुणों की व्याख्या में
अपने भारतीयता के गुणों को आत्मसार करे , सो येही पाएंगे की भारतीय पुत्रियों के गुणों में गंगा जैसे
तत्व -सत्व --निराकार से मकार होते हुएय दीखते हैं ....संवेदनशीलता -- सर्वप्रथम अपने पिता के रिश्ते में ,
परमआत्मा , भगवान , ईश्वर के पूज्यनीय दैविक -पुरुष आदि के गूढ़ रहस्य को साकार स्वीकारना सीखना ; आज्ञाकारी होने से --अहंकार , मद , को ऐसे मन--बुद्धि के स्वाध्याय में ,विचारों की गहनता में परिवर्तित कर लेना ; जैसे कि-- माता कि सरस्वती साधना को भी सयुज -यज्ञ कृति सहयोग मिले .....!
अपने भाग्नेया ( भाई ) के रिश्तों में -- सहज सस्नेह -सतप्रेम के विशुद्ध भावों को वीरता के आदर्श में ,
आपसी मतभेद को मृदुल विचारो -भावों से कठिन परिस्थितियों में भी सहज -शांतप्रियता से स्वीकारना ,
कि यदि -- पौरुष --या मनुष्य के कठोर --क्रूर - पशुता को परिवर्तित करना है तो माँ के जैसे ही --अपने स्वात्म--अहम् को गंगा के पानी जैसा -- निर्मल --विशुद्ध , पवित्र , और कोमल भवानी होना होगा ....!
फिर चाहे - भौतिक सुखों में भोग -वृत्ति को त्यागना पड़े या सांसारिक --एंद्रियों को आत्म-वश कर के ,
हर नए दिन , हर नए पारिवारिक , सामाजिक , समस्याओं को सुलझाने में तत्पर --तैयार -स्वावलंबी रहना ....!
अनेको धार्मिक ग्रंथों और आध्यामिक गुरुओं ने भी --जल --पानी के तत्व को --प्रकृति में --नदियों के
रहस्यमय जीवन को माँ कि शक्ति का आधार यानि दैवी -गुणों से भरपूर जाना -समझा -- और शिव के उपासक तो गंगा को शिव कि जटा में संयंत्रित --पुत्री कि भाँती -- अपने अमृत तत्वों से मनुष्यों का उद्धार करने वाली जननी भी स्वीकार किया है ....
आज के कलियुग में हमे --उसी --माँ कि अमृत शक्ति कि निर्मल -धारा--- विशुद्ध -पावनी --शिव कि शिवानी को अपने अन्दर कि मात्रि--सृजनात्मक भाव विभूतियों के द्वारा जागृत --आत्मसार --स्वीकार करना ही होगा ... यदि सम्पूर्ण विश्व में वसुधैव -- कुटुंब के -तत-सवित्तुर --सूर्या -- पुत्रों -पुत्रियों को भी
सृजन --सृष्टि --की--रचनात्मक विशक्तियों सहित परिवर्तित -करते रहना है ...और विनाश कारी--अस्त्रों --से भरे विश्व को परिवर्तन करे --शांति --संवेदना --मृदु --सरलता --दैविक -सौन्दर्य -बोध --ममतामयी
--करुना --वात्सल्य की प्राथमिकता जैसे गंगा तत्व -आधार से ...???
अपने स्वजनों --भगिनी --भाग्नेया बंधू--बांधवों से सर्वप्रथम येही --रचनात्मक --सृजन की अभीप्सा है !!!
सम्पूर्ण
अविरल, तरल --तरंगे , कल-कल निनाद , शिवे--शैल - सुखे, गौमुख उद्गम से ....
ऐसा अनेको संतों और कवियों की भाषा में पढ़ते आये है !-- हर हर गंगे की महिमा !
यदि भारतीय सृष्टि की कन्याकुमारी पुत्रियों के सृजनआत्मक रीतियों को देखें , समझे ...
और गंगा के आदि--उद्भव की स्मृतियों को ध्यान दें -- इतना ही नहीं , वरन गंगा के गुणों की व्याख्या में
अपने भारतीयता के गुणों को आत्मसार करे , सो येही पाएंगे की भारतीय पुत्रियों के गुणों में गंगा जैसे
तत्व -सत्व --निराकार से मकार होते हुएय दीखते हैं ....संवेदनशीलता -- सर्वप्रथम अपने पिता के रिश्ते में ,
परमआत्मा , भगवान , ईश्वर के पूज्यनीय दैविक -पुरुष आदि के गूढ़ रहस्य को साकार स्वीकारना सीखना ; आज्ञाकारी होने से --अहंकार , मद , को ऐसे मन--बुद्धि के स्वाध्याय में ,विचारों की गहनता में परिवर्तित कर लेना ; जैसे कि-- माता कि सरस्वती साधना को भी सयुज -यज्ञ कृति सहयोग मिले .....!
अपने भाग्नेया ( भाई ) के रिश्तों में -- सहज सस्नेह -सतप्रेम के विशुद्ध भावों को वीरता के आदर्श में ,
आपसी मतभेद को मृदुल विचारो -भावों से कठिन परिस्थितियों में भी सहज -शांतप्रियता से स्वीकारना ,
कि यदि -- पौरुष --या मनुष्य के कठोर --क्रूर - पशुता को परिवर्तित करना है तो माँ के जैसे ही --अपने स्वात्म--अहम् को गंगा के पानी जैसा -- निर्मल --विशुद्ध , पवित्र , और कोमल भवानी होना होगा ....!
फिर चाहे - भौतिक सुखों में भोग -वृत्ति को त्यागना पड़े या सांसारिक --एंद्रियों को आत्म-वश कर के ,
हर नए दिन , हर नए पारिवारिक , सामाजिक , समस्याओं को सुलझाने में तत्पर --तैयार -स्वावलंबी रहना ....!
अनेको धार्मिक ग्रंथों और आध्यामिक गुरुओं ने भी --जल --पानी के तत्व को --प्रकृति में --नदियों के
रहस्यमय जीवन को माँ कि शक्ति का आधार यानि दैवी -गुणों से भरपूर जाना -समझा -- और शिव के उपासक तो गंगा को शिव कि जटा में संयंत्रित --पुत्री कि भाँती -- अपने अमृत तत्वों से मनुष्यों का उद्धार करने वाली जननी भी स्वीकार किया है ....
आज के कलियुग में हमे --उसी --माँ कि अमृत शक्ति कि निर्मल -धारा--- विशुद्ध -पावनी --शिव कि शिवानी को अपने अन्दर कि मात्रि--सृजनात्मक भाव विभूतियों के द्वारा जागृत --आत्मसार --स्वीकार करना ही होगा ... यदि सम्पूर्ण विश्व में वसुधैव -- कुटुंब के -तत-सवित्तुर --सूर्या -- पुत्रों -पुत्रियों को भी
सृजन --सृष्टि --की--रचनात्मक विशक्तियों सहित परिवर्तित -करते रहना है ...और विनाश कारी--अस्त्रों --से भरे विश्व को परिवर्तन करे --शांति --संवेदना --मृदु --सरलता --दैविक -सौन्दर्य -बोध --ममतामयी
--करुना --वात्सल्य की प्राथमिकता जैसे गंगा तत्व -आधार से ...???
अपने स्वजनों --भगिनी --भाग्नेया बंधू--बांधवों से सर्वप्रथम येही --रचनात्मक --सृजन की अभीप्सा है !!!
सम्पूर्ण